नंबर-1 बनीं, टोक्यो में फेल; अब फिर ओलिंपिक में अंजुम: मां ने 12 की उम्र में पिस्टल थमाई, क्या पेरिस से शूटिंग में लाएंगी मेडल

[ad_1]

1 मई, 2019। 25 साल की शूटर अंजुम मौदगिल के लिए ये सपने जैसा था। वर्ल्ड कप में दो गोल्ड जीते। ISSF, यानी इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन की 10 मीटर एयर राइफल की रैंकिंग में नंबर-2 पहुंच गईं। थ्री पोजिशन 50 मीटर पिस्टल में भारत की नंबर-1 शूटर थीं। इ

.

फिर आया टोक्यो ओलिंपिक। 2020 में कोरोना महामारी थी, जुलाई-अगस्त 2021 में ओलिंपिक का आयोजन किया गया। 50 मीटर थ्री-पोजिशन राइफल शूटिंग में 15वें और 10 मीटर एयर राइफल मिक्स्ड टीम में अंजुम 18वें नंबर पर रहीं।

अंजुम ने खुद एक इंटरव्यू में बताया, ‘टोक्यो के बाद तीन साल मेरे लिए उतार-चढ़ाव वाले रहे। मानसिक तौर पर मैं बहुत दबाव में थी। सभी खेल संघ और IOC को समझना होगा कि खिलाड़ी के लिए मेंटल हेल्थ गंभीर मुद्दा है।’

पेरिस ओलिंपिक 2024 में फोटो सेशन के दौरान अंजुम। फोटो- anjum_moudgil इंस्टा

हालांकि अंजुम न सिर्फ इससे बाहर आईं बल्कि उन्होंने पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई भी किया। 1 अगस्त को अंजुम का पेरिस में 50 मीटर थ्री-पोजीशन राइफल में क्वालिफिकेशन राउंड है। दैनिक भास्कर की टीम चंडीगढ़ के सेक्टर-37 में अंजुम के घर पहुंची और उनकी मां शुभ मौदगिल से बात की। पढ़िए, ग्राउंड रिपोर्ट…

लोंगेवाला में अंजुम को पता चला, शूटर बनना है
राजस्थान का लोंगेवाला 1971 में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग से जुड़ी एक कहानी के लिए मशहूर है। 4-5 दिसंबर, 1971 की रात पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट ने लोंगेवाला की भारतीय चौकी पर हमला बोल दिया। उधर, 4000 सैनिक थे और इधर भारत के 120 सैनिक। भारतीय सैनिक पूरी रात लड़ते रहे और सुबह होने तक पाकिस्तानी फौज अपने टैंक छोड़कर भागने के लिए मजबूर हो गई।

अंजुम की मां शुभ मौदगिल बताती हैं, ‘लोंगेवाला ही वो जगह थी, जहां अंजुम को लगा कि वो शूटर बनना चाहती है। मैं NCC में ANO, यानी एसोसिएट NCC ऑफिसर बनी तो ग्वालियर ट्रेनिंग पर गई। वहां अंजुम ने पहली बार बंदूक चलते हुए देखी। फिर मैं पंजाब के चमकौर साहिब NCC कैंप के लिए गई और वहां अंजुम ने पहली बार लड़कियों को बंदूक चलाते देखा। पहली बार उसने खुद फायर किए।’

अंजुम ने NCC में रहते हुए पहली बार बंदूक चलाई। यहीं से उनके शूटर बनने की कहानी शुरू हुई।

अंजुम ने NCC में रहते हुए पहली बार बंदूक चलाई। यहीं से उनके शूटर बनने की कहानी शुरू हुई।

शुभ आगे बताती हैं, ‘अंजुम के शूटर बनने की कहानी जनवरी 2007 में शुरू हुई। वो दस दिन के कैंप में मेरे साथ लोंगेवाला गई थी। इस दौरान वो रोजाना शूटिंग की प्रैक्टिस करने लगी। इसके बाद 2008 में सेक्रेड हार्ट स्कूल चंडीगढ़ के जूनियर विंग में NCC जॉइन कर ली। 2009 में उसने पहली बार शूटिंग के सालाना कैंप में हिस्सा लिया। यहां कोर कमांडर कर्नल एमएस चौहान ने उसे ट्रेनिंग दी। वे शूटर और नेशनल कोच रहे हैं।’

शूटिंग थोड़ा बोरिंग गेम, लेकिन कोच ने मोटिवेशन बनाए रखा
शुभ खुद भी यूनिवर्सिटी लेवल शूटर रही हैं। वे बताती हैं, ‘अंजुम के शूटर बनने में कर्नल एमएस चौहान का रोल काफी अहम है। उन्होंने ही अंजुम को राइफल-पिस्टल होल्ड करना और निशाना लगाना सिखाया है।

ये फोटो दिल्ली में NCC हेडक्वार्टर की है। यहां अंजुम को सम्मानित किया गया था।

ये फोटो दिल्ली में NCC हेडक्वार्टर की है। यहां अंजुम को सम्मानित किया गया था।

‘शूटिंग थोड़ा बोरिंग गेम है, इसलिए कर्नल अंजुम को मोटिवेट करते थे, रोज सुबह उसे मोटिवेशनल कोट्स भेजा करते थे। कई बार हम रूटीन में काम करते हैं, तो बोर हो जाते हैं, फ्रेशनेस नहीं रहती, लेकिन अंजुम ने दो साल की मेहनत के बाद फरवरी 2011 में ही नेशनल टीम में जगह बना ली। 2013 से कोच दीपाली देशपांडे ने अंजुम को कोचिंग देनी शुरू की।’

अंजुम किसी से नहीं डरती, वोटर कार्ड बनाने वालों ने उसे हमारा बेटा समझ लिया था
अंजुम की मां शुभ एक किस्सा सुनाती हैं। वे हंसते हुए कहती हैं, ‘मेरे पिता ने हम तीन बहनों को कभी लड़कियों की तरह नहीं पाला था। इसी तरह हमने भी अंजुम की परवरिश ऐसे ही की है। हद तो तब हो गई, जब वोटर कार्ड बनाने वालों ने अंजुम को लड़का ही समझ लिया। अंजुम के वोटर कार्ड पर फीमेल के जगह मेल लिख दिया। वो कार्ड आज भी मैंने संभाल कर रखा है।’

2019 में अंजुम मौदगिल को अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। फोटो- anjum_moudgil इंस्टा

2019 में अंजुम मौदगिल को अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। फोटो- anjum_moudgil इंस्टा

शुभ के मुताबिक, ‘अंजुम एक बार केरल गई थी। रात को 11 बजे फ्लाइट पहुंची। इसके बाद टैक्सी से होटल जा रही थी। मुझे डर लग रहा था कि वह अकेली जा रही है, तो उसका जवाब था कि डर वाली कोई बात नहीं है।’

हक दिलाने के लड़ जाती थी, अब पुलिस में है
शुभ बताती हैं, ‘अंजुम गलत चीज को कभी भी बर्दाश्त नहीं करती है, हक के लिए लड़ जाती है। एक दिन अंजुम ने देखा कि एक शख्स ने रेहड़ी से सामान लिया, लेकिन पैसे नहीं दे रहे थे। वो तो उम्र में छोटी ही थी, लेकिन उस आदमी से भिड़ गई। बोली कि आपने रेहड़ी वाले अंकल की पेमेंट नहीं की है। उसने पैसे दिलाकर ही दम लिया। अब अंजुम खुद पंजाब पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है।’

अंजुम के पिता सुदर्शन मौदगिल पेशे से वकील हैं। वे भी शुभ की बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘अंजुम शुरू से ही काफी बोल्ड है। वह अपना हर काम खुद करती है। चाहे अपने डॉक्यूमेंट तैयार करने हों या अपने वेपन लेकर गाड़ी में रखना और खुद गाड़ी ड्राइव कर प्रैक्टिस के लिए जाना या फिर ट्रैक्टर चलाना हो।’

सुदर्शन आगे बताते हैं, ‘मैंने सफारी कार इसलिए खरीदी क्योंकि उसमें अंजुम के सारे वेपन आसानी से आ जाते हैं। उसका ड्राइविंग का लाइसेंस बना तो जब हम दिल्ली जाते थे, वह खुद गाड़ी लेकर जाती थी। मुझसे कहती थी कि पापा आप सो जाओ। इसके बाद इंटरनेशनल टूर शुरू हुए। उसने हमें चीन, ऑस्ट्रिया और जर्मनी घुमाया। जहां भी जाती है, एयरपोर्ट पर ही गाड़ी किराए पर ले लेती है। वहां पर खुद ड्राइविंग करती है।’

पेंटिंग की आमदनी से जरूरतमंद खिलाड़ियों की मदद
अंजुम के पिता सुदर्शन बताते हैं, ‘अंजुम बहुत अच्छी पेंटिंग बनाती है। इसका सारा सामान साथ लेकर चलती है। पेंटिंग बनाकर दोस्तों और खिलाड़ियों को देती है। ऑनलाइन डिमांड पर भी पेंटिंग बनाती है।’

अंजुम को पेंटिंग पसंद है। कलर्स और ब्रश साथ रखती हैं। फोटो- anjum_moudgil इंस्टा

अंजुम को पेंटिंग पसंद है। कलर्स और ब्रश साथ रखती हैं। फोटो- anjum_moudgil इंस्टा

पिता के मुताबिक, ‘अंजुम ने स्पोर्ट्स साइकोलॉजी में एमए किया है। उसे स्पोर्ट्स पर्सन की बायोग्राफी पढ़ने का बहुत शौक है। उसकी मां मैथ की टीचर थीं। वह पंजाब के मोहाली जिले में कुराली में तैनात थीं। उस समय साइंस फेयर लगते थे। वह अपने मॉडल बनाने के लिए अंजुम से सलाह लेती थीं। अंजुम आइडिया ही नहीं देती थी, बल्कि मॉडल बनाने में मदद भी करती थी। उसे लॉन टेनिस खेलना भी बहुत पसंद है।’

मलाई बहुत पसंद है, कोल्ड ड्रिंक न पीती है न पीने देती है
अंजुम की मां शुभ बताती हैं, ‘खाने-पीने के मामले में उसे घर की चीजें पसंद हैं। मलाई उसे काफी पसंद है। वह सारी सब्जियां खाती है। कोल्ड ड्रिंक बिल्कुल नहीं पीती, किसी को पीने भी नहीं देती। अदरक, शहद और काली मिर्च का सिरप उसे काफी पसंद है। अब भी कहीं जाती है तो उसे कच्ची हल्दी या अदरक सिरके में डालकर साथ देते हैं। हल्दी एंटीसेप्टिक होती है। जो उसके लिए फायदेमंद रहती है।’

मुलाकात के दौरान सुदर्शन और शुभ लगातार अंजुम की पसंद और नापसंद बताते रहते हैं, आखिर में बस एक ही बात कहते हैं कि इस बार उन्हें पूरी उम्मीद है कि अंजुम मेडल लेकर वापस आएगी।

[ad_2]