गांववाले कहते थे-कैसा बाप है, बेटी से मारपीट कराता है: लवलीना जीतीं तो त्योहार मनाया, पिता बोले- पैसे नहीं थे, खाली पेट बॉक्सिंग की

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‘पहले जब लवलीना बॉक्सिंग करती थी, तो गांव के लोग हमें ताने मारते थे। कहते थे कि बेटी को ये सब नहीं करना चाहिए। बेटी से मारपीट करवाते हो। फिर वह ओलिंपिक में मेडल जीतकर लाई। तब उसी गांव ने ऐसे खुशी मनाई, जैसे बिहू का त्योहार हो। लवलीना के मेडल जीतने के

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लवलीना के पापा तिकेन बोरगोहेन उनके मुश्किल सफर के गवाह और साथी रहे हैं। एक वक्त था जब तिकेन प्राइवेट नौकरी करते थे और पूरे महीने काम करके सिर्फ 4 हजार रुपए कमा पाते थे। पत्नी और तीन बेटियों के साथ असम के गोलाघाट जिले के बारोमुखिया गांव में रहते थे।

घर की हालत ऐसी थी कि लवलीना की डाइट के लिए भी पैसे नहीं होते थे। वे नॉर्मल डाइट लेकर ही बॉक्सिंग करतीं और मेडल भी जीततीं।

फोटो में लवलीना मां और पिता तिकेन के साथ हैं। तिकेन के मुताबिक लवलीना के बॉक्सर बनने के पीछे उनकी मां ही हैं। वे चाहती थीं कि बेटी सेल्फ डिफेंस के लिए कोई मार्शल आर्ट सीखे।

31 जुलाई, बुधवार को लवलीना पेरिस ओलिंपिक में मिडिल वेट कैटेगरी में राउंड ऑफ 16 के मुकाबले में उतरेंगी। उनका सामना जूनियर वर्ल्ड चैंपियन रहीं नॉर्वे की सुन्निवा हॉफस्टैड से है। लवलीना ने टोक्यो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इस बार भी वे दावेदार हैं। अगर मेडल जीत पाईं, तो दो ओलिंपिक मेडल जीतने वाली भारत की पहली बॉक्सर होंगी। पढ़िए लवलीना के घर से ग्राउंड रिपोर्ट…

पेपर में मोहम्मद अली की फोटो देखी, उनकी तरह बॉक्सर बनना तय किया
तिकेन लवलीना की जर्नी के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘2019 में लवलीना ने नेशनल गेम्स में गोल्ड जीता था। तब मैंने उससे कहा कि अब तुम्हें ओलिंपिक जीतना है। ये मुश्किल है, इसलिए अपने हर मैच से पहले मोहम्मद अली को याद करो और उनके जैसा बनो।

मोहम्मद अली ही क्यों? तिकेन जवाब देते हैं, ‘लवलीना की जर्नी मोहम्मद अली से ही शुरू हुई थी। एक बार पेपर में मोहम्मद अली की फोटो देखी थी। उनकी कहानी पढ़ी। उसके मन में बैठ गया कि मोहम्मद अली की तरह ही बनना है। लवलीना का डिफेंस तो मजबूत है ही, वे जोरदार पंच और जैब भी लगाती है। मोहम्मद अली भी अपने फुटवर्क और पंच के लिए जाने जाते थे।

14 की उम्र में बॉक्सिंग शुरू की, उसी साल जूनियर नेशनल चैंपियनशिप जीती
लवलीना की दोनों बड़ी बहनें लीचा और लीमा मॉय थाई खेलती थीं। ये किक बॉक्सिंग का एक रूप है। बहनों को देखकर लवलीना ने भी कम उम्र से ही मॉय थाई की प्रैक्टिस करने लगीं। 2012 में 14 साल की उम्र में उन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू की। इसके लिए गांव छोड़कर करीब 300 किमी दूर गुवाहाटी आ गईं। तब वे 9वीं क्लास में थीं।

लवलीना के पापा तिकेन बताते हैं, ‘उसका सिलेक्शन तो हो गया था, लेकिन हमारे पास उसे गुवाहाटी भेजने के लिए पैसे नहीं थे। दिन में मेरे पास कॉल आया कि आपको अगले दिन सुबह तक गुवाहाटी पहुंचना है। यहां-वहां से पैसों का इंतजाम किया।’

‘रात में ही मैं और लवलीना ट्रेन से गुवाहाटी के लिए निकल गए। हमारे पास जनरल टिकट थी। ट्रेन में सीट नहीं थी, इसलिए फर्श पर बैठकर पूरा सफर किया। लवलीना ने 2012 में ही जूनियर नेशनल चैंपियनशिप जीत ली। अगले साल सर्बिया में 2013 में नेशनल विमेन जूनियर कप में सिल्वर मेडल जीता।’

‘2015 में भी SAI के भोपाल सेंटर में जूनियर बॉक्सिंग टीम का कैंप लगा था। लवलीना इसमें हिस्सा लेने गई थीं। वो जब भोपाल में रहती थी, वहां खर्च के लिए 10 हजार रुपए लगते थे। हमारे पास इतने पैसे भी नहीं थे।’

‘पैसों की बहुत कमी रहती थी। उसे डाइट के लिए पैसे चाहिए होते थे। हम लोग उधार लेकर पैसे भेजते थे। कई बार डाइट के लिए पैसे नहीं होते थे। लवलीना ने नॉर्मल डाइट पर भी कई टूर्नामेंट खेले और जीते।’

लवलीना को 2020 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे ये पुरस्कार पाने वाली असम की छठवीं प्लेयर थीं।

लवलीना को 2020 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे ये पुरस्कार पाने वाली असम की छठवीं प्लेयर थीं।

ट्रेनिंग के लिए भोपाल गईं, रास्ते में खो गईं
लवलीना के बॉक्सिंग करियर की शुरुआत स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, यानी SAI के कैंप से हुई थी। SAI ने स्कूल में बॉक्सिंग ट्रायल कराया था। यहीं पदुम बोरो नाम के एक कोच की नजर लवलीना पर पड़ी। पदुम बोरो SAI के एक प्रोजेक्ट के तहत नए टैलेंट की तलाश में गोलाघाट गए थे।

Olympics.com. को दिए इंटरव्यू में पदुम बोरो ने बताया, ‘मैंने लवलीना के पंचिंग बैग, फास्ट पंचिंग जैसे टेस्ट लिए। उसका परफॉर्मेंस देखकर मुझे लगा कि उसे बॉक्सर बनाया जा सकता है।’

‘इसके बाद ट्रेनिंग के लिए उसे भोपाल बुलाया गया। 14 साल की उम्र में वो पहली बार भोपाल गई। वापस गुवाहाटी आते वक्त लवलीना हावड़ा स्टेशन पर खो गई। उसकी ट्रेन भी निकल गई। CRPF के जवानों ने उसे अकेले देखकर पूछताछ की और उसे गुवाहाटी जाने वाली ट्रेन में बिठाया।’

टोक्यो ओलिंपिक में लवलीना ने 69 किलो वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। वे मैरी कॉम और विजेंदर सिंह के बाद ओलंपिक मेडल जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज हैं।

टोक्यो ओलिंपिक में लवलीना ने 69 किलो वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। वे मैरी कॉम और विजेंदर सिंह के बाद ओलंपिक मेडल जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज हैं।

पहली बार कोच के सामने गईं, तब तक बॉक्सिंग नहीं की थी
पदुम बोरो लवलीना के पहले कोच थे। पदुम बोरो उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें लवलीना ने पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई होने के बाद पहला फोन किया था। हम उनसे मिले तब वे असम के उदलगुरी जिले में लोकल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में बतौर जज मौजूद थे।

पदुम बोरो कहते हैं, ‘लवलीना पहले किक बॉक्सिंग खेलती थी। गोलाघाट में उसका सिलेक्शन होने के बाद बॉक्सिंग सीखने गुवाहाटी आई। तभी से वो गुवाहाटी में ट्रेनिंग कर रही है। लवलीना मेरे पास आई थी, उससे पहले उसने बॉक्सिंग नहीं खेली थी। गुवाहाटी में उसने बेसिक से शुरू किया। कुछ ही दिनों में वो मेडल जीतने लगी।’

पदुम बोरो कहते हैं, ‘जब तक लवलीना मेडल नहीं लाई थी, कई परिवार बॉक्सिंग में महिलाओं को सपोर्ट नहीं करते थे। उसने ओलिंपिक में पदक जीता, उसके बाद महिलाएं भी इस खेल में आगे आ रही हैं।

लवलीना को देखकर लड़कियां बॉक्सिंग सीख रहीं
उदलगुरी में चल रहे टूर्नामेंट में लवलीना की फोटो भी लगी है। यहां मिलीं 15 साल की रमई केचन कहती हैं, ‘मैं असम की अगली लवलीना बनना चाहती हूं। परिवार से भी पूरा सपोर्ट है।’

तिकेन बोरगोहेन इस पर कहते हैं, अब तो असम में बॉक्सिंग के लिए अच्छी सुविधाएं मिलने लगी हैं। 10 साल पहले राज्य में बहुत कम इंतजाम थे। लवलीना ने टूर्नामेंट जीतना शुरू किया, उसके बाद चीजें बेहतर होती गईं। सरकार भी बॉक्सिंग को ज्यादा सपोर्ट करने लगी।’

‘पहले लवलीना हॉस्टल में रहती थी। तब वहां भी सुविधाएं नहीं थीं। अब तो हॉस्टल में सभी सुविधाएं हैं। सरकार खिलाड़ियों को सपोर्ट कर रही है। लवलीना को भी सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप मिलती है।’

पेरिस में मेडल जीतीं, तो मैरीकॉम को पीछे छोड़ेंगी
लवलीना बोरगोहेन ने टोक्यो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। वे विजेंदर सिंह और मैरी कॉम के बाद ओलंपिक मेडल जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज हैं। वे 75 किलो वेट कैटेगरी में हिस्सा ले रही हैं।

टोक्यो में ब्रॉन्ज जीतने के बाद लवलीना रिंग में कुछ खास नहीं कर पा रही थीं। लगा जैसे उनका करियर खत्म होने वाला है। कॉमनवेल्थ गेम्स में वे गोल्ड की दावेदार थीं, लेकिन वे क्वार्टर फाइनल में ही हार गईं। गोल्ड तो दूर ब्रॉन्ज भी नहीं जीत पाईं। इसके बाद उन्होंने फिर वापसी की और ऑस्ट्रेलिया की बॉक्सर को हराकर वर्ल्ड चैंपियन बनीं।

लवलीना एक बार फिर ओलिंपिक में हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दो बार की ओलंपिक मेडलिस्ट चीन की बॉक्सर ली कियान हो सकती हैं। लवलीना को आठवीं वरीयता मिली है, वहीं ली कियान नंबर वन रैंक पर हैं। लवलीना के क्वार्टर फाइनल में ली कियान से भिड़ने की चांस हैं।

2023 में एशियन गेम्स के फाइनल में ली कियान ने लवलीना को हराया था। इसी साल दिल्ली में हुई 2023 IBA विमेन वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में लवलीना ने ली कियान को 4-1 से हराया था।

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